महाराष्ट्र के तीन युवा इंजीनियरों ने किया कमाल, सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बचाव के लिए बनाए खाने योग्य कप
क्या आपने कभी सोचा है कि आप चाय पीएं या फिर खाना खाएं और उसके बाद अपने उस चाय के कप और प्लेट को भी खा जाएं ? आप सोच रहे होंगे यह कैसी बात हुई... लेकिन हम बताना चाहंगे कि यह बात सही है। जी हां, कोल्हापुर के तीन ऐसे युवा इंजीनियरों ने इस कथन को सच कर दिखाया है। दरअसल, इन्होंने ऐसे कप बनाए हैं जिन्हें कॉफी या चाय पीने के बाद आप खा भी सकते हैं। यही नहीं ये कप खाने में बेहद स्वादिष्ट भी हैं।
कौशल विकास से निकले अभिनव समाधान
किसी भी स्टॉल या कैफे में चाय या कॉफी पीने के बाद आमतौर पर कप को फेंक दिया जाता है क्योंकि यह प्लास्टिक या फिर कागज से बना हुआ होता है लेकिन अब कोल्हापुर में एक अलग ही नजारा देखने को मिलेगा। जी हां, चाय पीने के बाद अब कोई भी उस कप को खा सकता है जिसमें वह चाय या कॉफी पी रहा है। कोल्हापुर के तीन युवा इंजीनियरों दिग्विजय गायकवाड़, आदेश करंडे और राजेश खामकर ने इको फ्रेंडली बिस्केट कप तैयार किए हैं। जो प्लास्टिक और पेपर कप के लिए एक खाद्य विकल्प हैं। ये सभी उत्पाद आटे से बने होते हैं जिन्हें हम आमतौर पर मैदा के रूप में जानते हैं। कोई भी इन उत्पादों को चाय पीने के बाद खा सकता है।
आटे से बनी मैगनेट एडिबल कटलरी
इसे मैग्नेट एडिबेल कटलरी का नाम दिया गया है। अब इन युवाओं की योजना पर्यावरण के अनुकूल चम्मच और प्लेट बनाने की भी है जिसके लिए इन्होंने मशीन को डिजाइन किया है। इस बाबत आदेश करंडे कहते हैं कि जो पर्यावरण के लिए अच्छा हो उसी दृष्टि से हम लोगों ने मिलकर प्रयोग करके एक बिस्केट कप निकाला है उसमें हम डवलेपमंट करके आगे हम खाने के लिए प्लेट्स और कटोरी (बाउल) निकालेंगे। हमारा मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना है।
युवाओं ने बनाई पर्यावरण के अनुकूल कटलरी
दरअसल, डिस्पोजेबल कप की बढ़ती हुई मांग के कारण प्लास्टिक कचरे में जबरदस्त वृद्धि हुई है। पेपर कप प्लास्टिक के उपयोग को तो कम करते ही हैं लेकिन इससे वनों की कटाई बढ़ जाती है जो फिर से पर्यावरण को खराब करता है। इस स्थिति से निपटने के लिए इन युवाओं ने पर्यावरण के अनुकूल समाधान बनाने का निर्णय लिया। और इन बिस्केट कप की मशीन बनाने के लिए अपने इंजीनियरिंग ज्ञान का इस्तेमाल कर ये नवाचार किया।
दिग्विजय गायकवाड़ बताते हैं कि कोरोना के चलते सिरेमिक यूज बंद हो गया और पेपर कप का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा। इसलिए पेपर कप के इस्तेमाल को कम करने के लिए सोचा गया कि एडिबल कप निकालें जिन्हें लोग खा भी सकते हैं और पर्यावरण की सुरक्षा में भी योगदान दे सकते हैं। इसके लिए मुझे पंथ प्रधान योजना में काफी लाभ मिला साथ ही आर्थिक मदद भी मिली। इन छात्रों ने इस बात को साबित कर दिया है कि यह न्यू और वाइब्रेंट इंडिया है जो नवाचार और श्रमशीलता के साथ समस्या को हल करता है।
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