ललित सुरजन व्यक्ति नहीं संस्था थे. उनकी जितनी प्रतिबद्धता थी उतनी किसी असाधारण इंसान की ही हो सकती है. उनकी शिक्षा, समाज सेवा, साहित्य, सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वशांति, पाकिस्तान समेत विभिन्न देशों के साथ मैत्री, अफ्रीकी और एशियाई देशों की एकता एवं संविधान में निहित मूल्यों में अगाध आस्था थी. उनकी यह प्रतिबद्धता मात्र मौखिक या नहीं दिखावटी नहीं थी बल्कि मैदानी थी. इन सब मामलों में वह अपने पिता मायाराम सुरजन के शत-प्रतिशत उत्तराधिकारी थे.
मेरा सौभाग्य कि मुझे मायाराम जी व ललित दोनों के साथ अनेक क्षेत्रों में काम करने का अवसर मिला था. दोनों के साथ अनेक सार्वजनिक मंच साझा किये, अनेक यात्राएं की और अनेक मैदानी गतिविधियों में शामिल हुआ. सन 1950 में जब अखिल भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ का गठन हुआ उस समय महान पत्रकार एमसी चेलापति राव के नेतृत्व में पत्रकारों के लिए घोषणा पत्र पारित किया गया था. घोषणा पत्र में यह तय किया गया था कि पत्रकार को धनी और गरीब के बीच में गरीब का साथ देना है, शोषित और शोषक के बीच में शोषित का साथ देना है. इस तरह की अनेक प्रतिबद्धताए तय की गई थी. ललित जी ने इन सब को पूरी क्षमता से निभाया.
सामान्यतः समाचार पत्र का मालिक कलम का धनी नहीं होता परन्तु ललित और माया राम जी दोनों इसके अपवाद थे ललित के संपादकीय thought-provoking होते थे. देशबंधु ने अपनी कमाई बढ़ाने की खातिर कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. एक अच्छे लेखक व शक्तिशाली संपादक होने के साथ-साथ वे एक प्रभावशाली वक्ता भी थे. उनकी मृत्यु हम सब के लिए अपूर्णीय क्षति है. वे छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक संपदा का हिस्सा बन गए हैं. उन्हें मेरी व मुझसे जुड़ी सभी संस्थाओं की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि.
-एल एस हरदेनिया
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